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500 करोड़ कमाने वाली ‘छावा’ के डायरेक्टर की संघर्ष भरी कहानी – कभी बेचते थे वड़ा पाव, स्टूडियो में झाड़ू लगाकर सीखी फिल्ममेकिंग

बॉलीवुड में सफलता पाने के लिए टैलेंट के साथ-साथ कड़ी मेहनत और संघर्ष की भी जरूरत होती है। ऐसे ही एक डायरेक्टर की कहानी है, जिन्होंने अपनी मेहनत और जज्बे से 500 करोड़ कमाने वाली फिल्म ‘छावा’ बनाई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सफलता तक पहुंचने के लिए उन्होंने वड़ा पाव बेचा और स्टूडियो में झाड़ू तक लगाई?

यह कहानी प्रेरणा से भरी हुई है और यह साबित करती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मुश्किल आपको आपके सपने पूरे करने से नहीं रोक सकती। आइए जानते हैं इस डायरेक्टर की अनसुनी कहानी।

संघर्ष की शुरुआत – वड़ा पाव बेचने से लेकर फिल्म डायरेक्टर बनने तक

यह डायरेक्टर किसी फिल्मी बैकग्राउंड से नहीं आए थे। उनका बचपन बेहद संघर्षपूर्ण रहा। एक गरीब परिवार में जन्मे इस निर्देशक को बचपन से ही सिनेमा का शौक था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वे सीधे फिल्म इंडस्ट्री में कदम रख सकें।

घर का खर्च चलाने के लिए उन्होंने मुंबई की सड़कों पर वड़ा पाव बेचना शुरू किया। वह दिनभर वड़ा पाव बेचते और रात में फिल्मों के बारे में पढ़ते, नए-नए डायरेक्टर्स के इंटरव्यू सुनते और अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित होते रहते।

स्टूडियो में झाड़ू लगाकर सीखा फिल्ममेकिंग

मुंबई की मायानगरी में जहां हर कोई स्टार बनने का सपना लेकर आता है, वहां टिके रहना आसान नहीं होता। इस डायरेक्टर ने इंडस्ट्री में घुसने के लिए किसी बड़े बैनर में काम पाने की कोशिश की, लेकिन कोई उन्हें डायरेक्ट असिस्टेंट डायरेक्टर बनाने को तैयार नहीं था।

फिर उन्होंने एक स्टूडियो में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करना शुरू किया। वह वहां झाड़ू लगाते, कैमरा सेटअप को गौर से देखते और चुपचाप फिल्ममेकिंग की बारीकियां सीखते रहते।

धीरे-धीरे उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से कुछ छोटे-छोटे काम मिलने शुरू किए, जैसे लाइट असिस्टेंट और जूनियर असिस्टेंट डायरेक्टर का काम। इसके बाद उन्होंने कुछ शॉर्ट फिल्में बनाईं, जिनकी सराहना की गई और यहीं से उनका फिल्मी करियर असली मोड़ लेने लगा।

पहली फिल्म से मिली पहचान

संघर्ष के बाद जब उन्हें पहली फिल्म डायरेक्ट करने का मौका मिला, तो उन्होंने इसे एक बेहतरीन प्रोजेक्ट में तब्दील कर दिया। उनकी डेब्यू फिल्म को अच्छी सफलता मिली, लेकिन असली धमाका उनकी फिल्म ‘छावा’ से हुआ।

यह फिल्म ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित थी और दर्शकों ने इसे खूब पसंद किया। फिल्म ने 500 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई की, जो कि उनके लिए किसी सपने के सच होने जैसा था।

‘छावा’ की सफलता और डायरेक्टर की मेहनत

फिल्म ‘छावा’ को बनाने में डायरेक्टर ने जी-जान लगा दी थी। ऐतिहासिक किरदारों की रिसर्च से लेकर ग्रैंड सेट डिजाइन तक, उन्होंने हर छोटी-बड़ी चीज पर ध्यान दिया।

उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि फिल्म को न सिर्फ भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया। फिल्म को कई पुरस्कार मिले और इसने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई की।

प्रेरणा देने वाली कहानी

इस डायरेक्टर की कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है, जो बड़े सपने देखते हैं लेकिन संसाधनों की कमी के कारण उन्हें छोड़ देते हैं। उनकी सफलता इस बात का सबूत है कि मेहनत और लगन से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।

उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा था, “अगर आप अपने सपनों को सच्चे दिल से पूरा करना चाहते हैं, तो कोई भी कठिनाई आपको रोक नहीं सकती। मैंने वड़ा पाव बेचा, झाड़ू लगाई, लेकिन कभी हार नहीं मानी। आज जब मैं अपनी फिल्म की सफलता देखता हूं, तो मुझे लगता है कि मेरी मेहनत रंग लाई।”

निष्कर्ष

फिल्म इंडस्ट्री में जहां स्टार किड्स को आसानी से मौके मिल जाते हैं, वहां इस डायरेक्टर ने अपने संघर्ष से खुद की पहचान बनाई। उनकी कहानी हर उस इंसान को प्रेरित करती है, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करने को तैयार है।

अगर आप भी किसी बड़े मुकाम को हासिल करना चाहते हैं, तो यह कहानी आपके लिए सबक है – कड़ी मेहनत, धैर्य और लगन से कुछ भी संभव है!


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